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2 अप्रैल 2011 ऐसे लिखी थी टीम इंडिया ने विश्व कप जीत की इबारत

2 अप्रैल 2011, यह वह तारीख है जो भारतीय क्रिकेट इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज है। क्योंकि आज ही के दिन भारत ने दूसरी बार क्रिकेट विश्व कप जीता था। भारत ने 28 साल के लंबे इंतजार को खत्म करते हुए 2011 विश्व कप फाइनल में श्रीलंका को हराकर दूसरी बार विश्व चैपिंयन का खिताब हासिल किया था।

इन पड़ावों को पार कर बनाई थी फाइनल में जगह-

टीम इंडिया ने 2011 में हुए क्रिकेट विश्व कप में अपने अभियान की शुरूआत 19 फरवरी को बांग्लादेश के खिलाफ की थी। वीरेंद्र सहवाग के 175 एवं विराट कोहली की 100 रन की पारी की बदौलत टीम इंडिया ने इस मुकाबले में बांग्लादेश को हराया था और विश्व कप अभियान का शानदार आगाज़ किया।

इसके बाद दूसरे मैच में भारत का सामना इंग्लैंड से था। यह मुकाबला क्रिकेट विश्व कप इतिहास के रोमांचक मुकाबलों में से एक था। इस मैच में भारत ने सचिन तेंदुलकर के शतक की मदद से 338 रन बनाए जवाब में इंग्लैंड ने एंड्रयू स्ट्रॉस के शतक की मदद से 338 रन ही बनाए और मुकाबला टाई रहा। 

इसके बाद हुए मैचों में भारत ने आयरलैंड और नीदरलैंड को 5-5 विकेटों से मात दी। टीम का अगला मुकाबला विश्व कप की प्रबल दावेदार मानी जा रही दक्षिण अफ्रीका के साथ था। टीम इंडिया के शीर्षक्रम ने इस मुकाबले में शानदार प्रदर्शन किया। सचिन तेंदुलकर ने जहां इस मुकाबले में इस विश्व कप का अपना दूसरा शतक जड़ा वहीं, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर ने अर्धशतकीय पारियां खेली। लेकिन मध्यक्रम असफल रहा और भारत 296 पर ऑल आउट हो गया। दक्षिण अफ्रीका ने 7 विकेट खोकर और 2 गेंदे शेष रहते हुए यह लक्ष्य हासिल कर लिया और विश्व कप-2011 में टीम इंडिया को पहली हार नसीब हुई। 

लेकिन अगले मैच में वेस्टइंडीज के खिलाफ टीम इंडिया ने धमाकेदार वापसी की। युवराज सिंह के ऑलराउंडर प्रदर्शन की बदौलत टीम ने यह मैच 80 रनों से जीता। युवराज सिंह ने शानदार शतकीय पारी खेली। इस मैच को जीतकर टीम इंडिया ने क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया।

क्वार्टर फाइनल में टीम इंडिया का सामना था विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ। ऑस्ट्रेलिया ने इस मैच में पोंटिंग की शतक की मदद से टीम इंडिया को 261 रनों का लक्ष्य दिया। युवराज सिंह इस मैच में भारतीय टीम की जीत के हीरो रहे और उनके ऑलराउंडर प्रदर्शन के दम पर टीम इंडिया ने यह मुकाबला 5 विकेट से जीता और ऑस्ट्रेलिया को विश्व कप 2011 से बाहर करते हुए सेमीफाइनल में प्रवेश किया।

पाकिस्तान को सेमीफाइनल में हराया

सेमीफाइनल में टीम इंडिया को आमना-सामना करना था अपने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के साथ। मोहली में खेले गए इस मैच को लेकर भारत वर्ष में गजब का माहौल था। भारत के प्रधानमंत्री और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री समेत भारत की कई नामी गिरामी हस्तियां इस मैच को देखने स्टेडियम में मौजूद थी। 30 मार्च को खेले गए मुकाबले में भारत ने पाकिस्तान के सामने 261 रन का लक्ष्य रखा था। सचिन तेंदुलकर की 85 रन की पारी की बदौलत भारत ने यह स्कोर बनाया। भारत की सधी हुई गेंदबाजी के आगे पाकिस्तान बल्लेबाजों ने घुटने टेक दिए और भारत ने पाकिस्तान को 29 रन से हराया। इसी के साथ भारतीय टीम पाकिस्तान के खिलाफ विश्व कप मुकाबलों में फिर अजेय साबित हुई। इस जीत के साथ टीम इंडिया ने विश्व कप 2011 के फाइनल में जगह बनाई।

श्रीलंका को मात देकर रचा इतिहास-

मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेले गए 2011 विश्व कप फाइनल में भारत के सामने श्रीलंका की चुनौती थी। श्रीलंका ने टॉस जीता और पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। महेला जयवर्धने की नाबाद 103 रन की पारी की बदौलत लंका ने 274 रन का स्कोर खड़ा किया।

फाइनल मुकाबले में कई बातें भारत के खिलाफ थीं। जैसे श्रीलंका लगातार दूसरा विश्व कप फाइनल खेल रही थी और आईसीसी टूर्नामेंट में उसका पलड़ा टीम इंडिया पर भारी रहता है। इससे पहले तक कोई भी टीम अपने घरेलू मैदान में विश्व कप नहीं जीती थी। लक्ष्य का पीछा करते हुए केवल दो ही बार टीमें विश्व कप फाइनल जीत पाई थीं। साथ ही जिस टीम के बल्लेबाज ने फाइनल में शतक लगाया वह कभी हारी नहीं थी।

भारत 275 रन के लक्ष्य का पीछा करने उतरा। आंकड़े पहले ही भारत के पक्ष में नहीं थे और मलिंगा ने 31 के कुल स्कोर पर ही वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर को पवैलियन भेज दिया था। सहवाग खाता खुलने से पहले ही दूसरी गेंद पर आउट हो गए। सचिन (18) दो चौके लगाने के बाद चलते बने। सचिन के आउट होते ही पूरे स्टेडियम में सन्नाटा छा गया और अब बाजी पूरी तरह श्रीलंका के हाथ में थी।

विराट कोहली और गौतम गंभीर ने मोर्चा संभाला। दोनों ने 83 रन की लाजवाब साझेदारी की और मुकाबले में भारत की वापसी करवाई। इसके बाद दिलशान ने कोहली को आउट कर श्रीलंका को फिर से जश्न मनाने का मौका दिया। उनके जाने के बाद सभी को युवराज सिंह से उम्मीदें थी। लेकिन इस मैच में धोनी ने नंबर पांच पर आकर सभी को चौंका दिया। क्योंकि युवराज सिंह शानदार फॉर्म में थे और धोनी का बल्ला इस टूर्नामेंट में कुछ खास नहीं कर पाया था। इस मैच से पहले उनका टूर्नामेंट में उच्च स्कोर 34 रन था। 

खैर धोनी ने गंभीर के साथ संभल कर खेलना शुरू किया और देखते ही देखते दोनों के बीच 109 रन की साझेदारी हो गई।   लेकिन पारी के 42वें ओवर में गंभीर परेरा की गेंद पर बोल्ड हो गए। गंभीर ने 97 रन की पारी खेली थी वे विश्व कप फाइनल में शतक बनाने से चूक गए। वे जब आउट हुए तक भारत को 52 गेंदो पर 52 रन चाहिए थे।

अब मैदान में थे इस विश्व कप के नायक युवराज सिंह। गेंद और बल्ले से इस खिलाड़ी ने विश्व कप में धूम मचा रखी थी। फाइनल में भी युवी ने चौके के साथ खाता खोला। इसके बाद धोनी-युवी की जोड़ी ने चिर-परिचित अंदाज में रन बनाए और भारत को जीत की दहलीज पर पहुंचा दिया। 49वां ओवर, भारत को जीत के लिए 12 गेंद में पांच रन की दरकार थी। युवराज ने पहली गेंद पर एक रन लिया. अब सामने थे धोनी और गेंद थी नुवान कुलासेकरा के पास। उन्होंने दूसरी गेंद फुल लैंथ पर फेंकी और धोनी ने उसे लॉन्ग ऑन के ऊपर से स्टैंड्स में पहुंचा दिया और तब तक गेंद को देखते रहे जब तक वो स्टैंड्स में नहीं पहुंची। हिंदुस्तान के करोड़ो टीवी सेट्स में एक आवाज गूंजी-

Dhoni finishes it off in style, a magnificent strike into the crowd, India lift the World Cup after 28 years, the party starts in the dressing room.

ये आवाज भी भारतीय कंमेटेटर रवि शास्त्री की जिसे आज भी सुनते ही भारत वर्ष के करोड़ो क्रिकेट प्रेमियों के आगे धोनी का वह ऐतिहासिक छक्का आंखों के सामने आ जाता है। जिसने भारत को 28 साल बाद विश्व चैंपियन बनाया।

ashishsaini
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